शहरी सभ्यता के जादुई दायरे में श्रम और डॉ. अंबेडकर का 10 बिल ड्राफ्ट Bill Draft के बारे में बताया गया है: 1 मई को दुनिया मेहनतकश तबके की मेहनत को सलाम करती है। कोरोना काल में मजदूरों पर सबसे ज्यादा मार पड़ी। क्या आप जानते हैं कि वह कौन है जिसने मजदूरों के काम के घंटे से लेकर इंसुरेंस तक की लड़ाई लड़ी? जवाब है - डॉ. बी आर अंबेडकर और उनके 10 बिल ड्राफ्ट। यहां पढ़ें
शहरी सभ्यता के जादुई दायरे में श्रम और डॉ. B R अंबेडकर का 10 बिल ड्राफ्ट |
शहरी सभ्यता के जादुई दायरे में श्रम और डॉ. अंबेडकर का 10 बिल ड्राफ्ट
- लेखक एदुआर्दो गालेआनो की स्पेनिश भाषा में लिखी गई किताब 'ओपन वेंस ऑफ़ लातिन अमेरिका Open veins of Latin America' श्रम की चिरकालिक समस्या पर बेहद गंभीर चर्चा करती है।
- कहती है वहां उनका सामना धन दौलत की मरीचिकाओं-चमकती कारों, महल जैसे घरों और शक्तिशाली मशीनों से होता है।
- उन मरीचिकाओं से जिन्हें वे कभी भी हासिल नहीं कर पाते।
- शहर उन्हें एक सुरक्षित नौकरी ,सिर पर एक अच्छी छत और भोजन से भरी हुई थाली देने से इंकार कर देता है
- और इस तरह इन गरीबों को और गरीब बना देता है।
- इतनी मेहनत और भागदौड़ के बाद भी उतना नहीं मिल पाता जितना उम्मीद होता है । यह भी पढ़ें
1 मई श्रम दिवस : 10 बिल ड्राफ्ट Bill Draft
- 1 मई को दुनिया भर में श्रम दिवस के रूप में मनाया जाता है।
- 1 मई यानी श्रम शक्ति से जुड़ा हुआ दिन। छुट्टी का दिन। दिन में क्या रखा है कीमत तो श्रम का होना चाहिए।
- इस दिवस का आरंभ 1886 में शिकागो में हुआ।
- मजदूर को जैसे जानवर के समान समझा जाता है अट्ठारह अट्ठारह घंटे काम बिना रुके करना होता था।
- उस समय मजदूर 8 घंटे काम और सप्ताह में 1 दिन की छुट्टी की मांग कर रहे थे।
- इस हड़ताल के दौरान एक बम धमाका हुआ 7 मजदूर मारे गए।
- अंततः श्रमिक वर्ग की मांगे मान ली गई। इसके बाद 1889 में पेरिस में हुए अंतरराष्ट्रीय महासभा की दूसरी बैठक में यह प्रस्ताव पारित हुआ
- कि इस दिन को अब मई दिवस के रुप में मनाया जाए
- भारत में 1923 से मई दिवस मनाने की शुरुआत हुई
- 'दुनिया भर के मजदूर एक हो' प्रथम और द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान के नारों से गूंज उठा
- और औद्योगिक उत्पादन तंत्र के विस्तृत होते परिदृश्य को देखते हुए श्रमिकों का भविष्य के लिए चिंताओं और विमर्शों का दौर शुरू हो गया।
- शहरों की सीमाओं पर हर रात टिन, मिट्टी और गत्ते की झोपड़पट्टी के रूप में नए परिशिष्ट जुड़ जाते हैं
- तथा गरीबी और उम्मीद के चलते हाशिए पर पड़े लोग वहां बढ़ते ही चले जाते हैं ।
- वे नौकर बन जाते हैं, वे शिकंजी या जो मिल जाए ,उस सामान को बेचते हैं वे फावड़ा चलाने, कचरा बिनने, राजगिरी करने, साफ-सफाई या जो भी काम उन्हें मिल जाए ,उसके लिए उपलब्ध रहते हैं...
- सड़कों के किनारे फेंक दी गई मजदूरों की यह भीड़ अंदरूनी बाजार के विकास को कुंठित करती है
- और मजदूरी के स्तर को नीचे खींच लेती है
- ग्रामीण अल्प रोजगार शहरी अल्प रोजगार में तब्दील हो जाता है
- नौकरशाही बढ़ती है, वे लोग जिन्हें काम से अधिकार से वंचित कर दिया गया है,
- उनके लिए झोपड़पट्टियां अथाह नालों की तरह फैलती जाती है
फैक्ट्रियां इस अतिरिक्त श्रम को खफा नहीं पाती लेकिन इस विशाल हमेशा उपलब्ध आरक्षित फौज की मौजूदगी के चलते उत्पादकता बढ़ती रहती है।
9 अप्रैल 1946 को बाबासाहेब मीका माइंस लेबर वेलफेयर फंड बिल लेकर आएं ताकि मजदूरों की भलाई के लिए एक अलग से फंड बनाया जा सके।
काम करने वाली महिलाएं के लिए माइंस मेटरनिटी बेनेफिट (अमेंडमेंट) बिल लेकर आए और उसे पास कराया
ताकि बच्चा पैदा होने पर महिला को मातृत्व अवकाश मिल सके और उसका वेतन भी ना कटे।
जो मातृत्व लाभ अधिनियम की धारा 5 से अस्पष्टता का कारण बनता है। जिसमें दिया है 4 सप्ताह से पहले हर दिन महिला को (प्रसव से पहले) मातृत्व लाभ का हक हो।
समान काम के लिए समान वेतन हमें या ख्याल रखना चाहिए कि महिलाओं को भी पुरुषों के समान वेतन मिले- लिफ्टिंग बैन ऑन अपार्टमेंट। यह भी पढ़ें what-is-best-treatment-option
मजदूरों की भलाई के लिए बाबा साहब डॉ B R अंबेडकर का 10 बिल ड्राफ्ट किए
काम के घंटे घटाने का मतलब रोजगार का बढ़ाना लेकिन काम का समय 12 से 8 घंटे के किये जाते समय वेतन कम नहीं किया जाना चाहिए। 10 बिल ड्राफ्ट नाम जिससे आप लाभ उठा सकते हैं -
द कोल माइंस सेफ्टी बिल
द फैक्ट्रीज (अमेंडमेंट) बिल
द फैक्ट्री (सेकंड अमेंडमेंट) बिल
वर्कमैन कंपेन्सेशन बिल
द इंडियन माइंस बिल
वर्कर्स वेलफेयर एंड सोशल सिक्योरिटी बिल
मीका माइंस वेलफेयर बिल
इंडस्ट्रियल वर्कर्स हाउसिंग एंड हेल्थ बिल
हिन्दू कोड बिल
टी कंट्रोल बिल ड्राफ्ट किए थे।
इतनी सब कुछ होने के बाद भी श्रम को जीवन में उचित स्थान दिलाने का संघर्ष हारता गया है, पीछे हटता गया है।
लेकिन यह लड़ाई जारी रहेगी। कल का इतिहास भले रोबोट्स और नैनो के हाथों लिखा जाए पर श्रम अपनी अभिव्यक्ति को राहें तलाश ही लेगा।
श्रम एक मात्र प्रार्थना है जिसका उत्तर प्राकृति देती है - रॉबर्ट ग्रीन इंगरसोल।
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