संत गाडगे महाराज का जीवन परिचय Gadge Maharaj Jivan Parichay in Hindi
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गाडगे महाराज प्रसिद्ध बहुजन महापुरुषों में से एक थें राष्ट्र संत गाडगे बाबा। जो समाज और शिक्षा के लिए बहुत ही अच्छा संदेश दिए। और हमारे लिए विरासत में बहुत कुछ छोड़ गए।
गाडगे बाबा का प्रारंभिक जीवन परिचय संत गाडगे महाराज के कार्य क्या थे? संत गाडगे बाबा ग्राम स्वच्छता अभियान गाडगे महाराज के पुरस्कार ? आइए जानते हैं विस्तार से
संत गाडगे महाराज
वे एक घूमते- फिरते समाजिक शिक्षक थे जिनका कहना था " पैसों की तंगी हो तो खाने का बर्तन बेच दो लेकिन अपने बच्चों को जरूर पढ़ाओ।"
वे पैरों में फटी चप्पल, शरीर पर फट्टी-चिथड़े लपेट और सर पर मिट्टी का कटोरा ढ़क्कर गांव- गांव पैदल ही यात्रा करते थे। येही उनकी पहचान थी। जो आगे चलकर राष्ट्र का प्रसिद्ध सन्त कहलाए। जिनका कहना था -
"सुगंध देने वाले फूलों को पात्र में रखकर भगवान की पत्थर की मूर्ति पर अर्पित करने के बजाय चारों ओर बसे हुए लोगों की सेवा के लिए अपना खून खपाओ। भूखे लोगों को रोटी खिलाई, तो ही तुम्हारा जन्म सार्थक होगा। पूजा के उन फूलों से तो मेरा झाड़ू ही श्रेष्ठ है"।- संत गाडगे बाबा
संत गाडगे महाराज और उनकी उपलब्धियाँ |
संत गाडगे बाबा का जीवन परिचय
संत गाडगे के देह दृश्य सुंदर एवं सुडौल शरीर, गोरा रंग, उन्नत ललाट तथा प्रतिभाशाली व्यक्तित्व के व्यक्ति थे। वो अपने नाना के घर मूर्तिजा़पुर तालुक के डापुरी में पले-बढ़े थे। मामा खेती बाड़ी किया करते थें। बचपन में पढ़ाई ना कर पाने की वजह से उन्हें खेती और पशुपालन में दिलचस्पी थी।
जवान होते ही उनकी शादी 1892 में कर दी गई। उनकी पत्नी का नाम कुंतिबाई था। उनके बच्चे हुए। तब वो ये जान चुके थे कि शिक्षा और स्वच्छता कितना जरूरी है।
गौतम बुद्ध की भांती पीड़ित मानवता की सहायतार्थ तथा समाजसेवा के लिए उन्होंने 1 फरवरी सन् 1905 को गृहत्याग किया। गाडगे दया, करुणा, भार्तभाव, सममैत्री, मानव कल्याण, परोपकार, दिनहीनों के सहायतार्थ आदि गुणों के भंडार बुद्ध के अवतार जैसे थे। गृहत्याग से लेकर 1917 तक साधक अवस्था में रहें।
एक संत के रूप में अपने जीवन को आगे बढ़ाने के लिए अपने परिवार को छोड़ने से पहले अपने गांव में एक स्वयंसेवक के रूप में काम किया। और कई शैक्षणिक संस्थानों और पशुआश्रम को बनाने का कार्य उनके द्वारा प्राप्त धन से शुरू किया।
संत गाडगे जी की तबीयत 13 दिसंबर, 1956 को अचानक खराब हुई। 17 दिसंबर को उनकी हालत अधिक खराब हो गई। 19 दिसंबर, 1956 को रात्रि 11 बजे अमरावती के लिए जब रेलगाड़ी चली तो रास्ते में ही उनकी हालत गंभीर होने लगी। गाड़ी में सवार चिकित्सकों ने उन्हें अमरावती ले जाने की सलाह दी।
गाड़ी कहीं भी जाती, गाडगे बाबा तो अपने जीवन का सफर पूरा कर चुके थे। रात्रि 12:30 बजे रात्रि 12:00 बजे उन्होंने अपनी अंतिम सांस ली, इस तरह 20 दिसंबर 1956 को परिनिर्वाण को प्राप्त हुए। जिस जगह बाबा का अंतिम संस्कार हुआ वह गाडगे नगर कहलाता है। आज वह बृहद अमरावती का हिस्सा है ।
Sant Gadge Maharaj Ka Jivan Parichay
- समाज को आगे बढ़ाने की इतनी ललक ऐसी दृढ़ इच्छा थी ।
- खुद अनपढ़ रहें लेकिन युवा पीढ़ी पढ़ सके इसके लिए उन्होंने भीख तक मांगा।
- गांव की नालियां तक साफ की। और फिर खुद ही बधाई भी देते कि अब आपका गांव स्वच्छ है।
- सफाई के बदले गांव के लोग उन्हें पैसे देते थे
- और इनसे मिलने वाले पैसों को उन्होंने सामाजिक विकास कार्य में लगाया।
- किंतु अपने सारे जीवन में इस महापुरुष ने अपने लिए एक कुटिया तक नहीं बनवाई।
- धर्मशालाओं के बरामदे या आसपास के किसी वृक्ष के नीचे ही अपनी सारी जिंदगी बिता दी।
- खाने तक को बर्तन नहीं था अपना सब कुछ बेचकर अपना जीवन समाज को समर्पित कर दिया।
- उनका ट्रेडमार्क हाथों में झाड़ू लेकर चलते थे जहां भी गंदगी दिखती गांव गांव साफ करने लगते।
- संत गाडगे ने समाज को स्वच्छता एवं शिक्षा दी।
- इस माध्यम से लोगों के अंदर की गंदगी को दूर कर मानवता का संदेश दिया ।
- अपने कीर्तन से क्रांति लाकर व सत्यकर्म के कमाई पैसों से इतिहास बना दिया।
- स्वच्छता ना सिर्फ हमारे वातावरण को शुद्ध रखता है
- बल्कि हमें एक स्वाथ्य और विकसित जीवन भी देता है।
- स्वच्छता के जनक संत गाडगे महाराज जानते थें
तस्वीर राष्ट्रसंत गाडगे बाबा का परिनिर्वाण दिवस 20 दिसंबर 1956 |
संत गाडगेबाबा महाराज सामाजिक कार्य
- संत गाडगेबाबा महाराज सामाजिक कार्य
- संत गाडगे बाबा ग्राम स्वच्छता अभियान
गाडगेजी को एका एक जैसे बोध होता है वह क्या है? कौन है.. जगत क्या है... समाज क्या है? और फिर गाडगे घर छोड़ देते हैं, निकल पड़ते हैं इन सब सवालों के उत्तर जानाने।
वह पैदल यात्रा करते हैं एक गांव फिर दूसरा गांव फिर तीसरा चौथा पांचवा गांव इस दौरान उन्होंने चीजों को देखा, समझा, इसके बाद उनकी खोज पूरी होती है- झाड़ू से।
गाडगे इस निष्कर्ष पर पहुंचते हैं कि उनके आसपास जैसा है ठीक नहीं है सफाई की जरूरत है। मनुष्य का व्यवहार में एक दूसरे के प्रति इतना भिन्नता क्यों है? समाज को जरूरत क्या है? लोगों को उनके घर परिवार को। उनके दिमाग में गंदी सोच को निकालने झाड़ू पकड़ते हैं और शुरू हो जाते हैं लोगों के घर के सामने गंदी नालियों की सफाई करने लगते हैं।
गाडगे बाबा के अनुसार यह कीचड़ से भरी गंदी नालिया ही है जो लोगों की सोच को गंदा रखती है। अगर लोगों के घर आंगन के सामने से ये गंदी बदबूदार नालियों की सफाई कर दी जाए। तो शायद सामाज के लिये इनकी सोच विचार बदले। यह चिंता किए बगैर कि लोग क्या सोचेंगे मेरे बारे में गाडगे अपने काम में लग जाते हैं।
यह भी एक संयोग ही है की 29 वर्ष की आयु में तथागत बुद्ध ने गृह त्याग किया था और गाडगे महाराज भी । गाडगे जी की हाथ में लकड़ी का डंडा दूसरे हाथ में मिट्टी का भिक्षा पात्र और शरीर पर फटे पुराने कपड़ों की गांठ जिस्म पर लपेटे रहते चीवर बन पहन कर कर चल दिए। ऐसी विचित्र वेशभूषा को देखकर कुत्तों का भौंकना काटना लाजमी था।
इनसे बचने की कोशिश करते हैं लहूलुहान हो जाते हैं। कुत्तों की शोर के बाद बच्चों कातिलाना पागल आया पागल आया चोर लुटेरे भिखारी समझते और भय से भगा देते।
फिर निकल पड़ते हैं। शुरू शुरू में यह समस्या रही फिर धीरे-धीरे स्थिति सामान्य होने लगी। लोग उन्हें भजन गायक और उपदेशक के रूप में पहले से ही जानते थे परंतु इस समय कुछ नया लिवाज ही था उनका।
चलते चलते एक दिन दलित बस्ती पहुंचे। नजदीक आने पर लोगों ने उन्हें पहचान लिया। पूरी बस्ती में कूड़े के ढेर थी मक्खियां भिनभिना रही थी, चारो तरफ गंदगी फैली थी, बच्चे खेल रहे थे।
गाडगे बाबा दलितों को संबोधित करते हुए कहते है आप अपने घरों के बगल में इस गंदगी को देखो। यह गंदगी कई किस्म की बीमारियों का कारण है। भाई लोग ताश खेलते हैं, शराब पीने में लगे रहते हैं। क्यों ना सामाजिक बदलाव लाया जाए।
इस तरह उन्होंने समाज उत्थान एवं समाज के कुरीतियों को दूर करने में अमूल्य योगदान दिए। समाज सुधारक के रूप में कभी ना मिटने वाली इतिहास में अपनी छाप छोड़ गए।
संत गाडगे महाराज का जीवन परिचय Gadge Maharaj in Hindi |
सामाजिक कल्याण, लोक भावना और जन जागरण के माध्यम से बासाहब डॉ. भीमराव अंबेडकर और गाडगेबाबा एक दूसरे से पहले से ही प्रभावित थे। जो आगे चलकर बाबा साहब के सामाजिक गुरु बनें। गाडगे महाराज बाबासाहब से 15 साल के बड़े थें। वो अपने प्रवचनों में अक्सर कहां करते थे कि यदि आपको साक्षात भगवान के दर्शन करने हैं तो आपके लिए जीता जागता भगवान बाबा साहब अंबेडकर हैं ।
संत गाडगे महाराज के पुरस्कार
गांवो का विकास और उनकी दृष्टि आज भी देशभर के कई संस्थान संगठनों और राजनेताओं को प्रेरित करती है। उनके नाम पर कॉलेज और स्कूल सहित कई संस्थान शुरू किए गए हैं
उनके नाम भारत सरकार स्वच्छता और पानी के लिए राष्ट्रीय पुरस्कार की गई। उनके सम्मान में अमरावती विश्वविद्यालय का नाम भी रखा गया है, उनके सम्मान में महाराष्ट्र सरकार द्वारा संत गाडगे बाबा ग्राम स्वच्छता अभियान शुरू किया गया था।
संत गाडगे बाबा के अमूल्य विचार-
"भले ही एक कपड़ा कम पहनो अगर थाली नहीं है तो हथेली पर रखकर खाओ लेकिन अपने बच्चों को पुस्तकें जरूर पढ़ाओ।" - संत गाडगे बाबा
- भूखे को अन्न दो
- प्यासे को पानी पिलाओ
- निर्वस्त्र को कपड़े दो
- गरीब बच्चों को शिक्षा दो
- बेघरों को आश्रय दो
- अंधे निशक्तजन एवं रोगियों का उपचार कराओ
- बेगारों को नौकरी दो
- पशु पक्षियों की सुरक्षा करो
- गरीब युवक-युवतियों का विवाह करवाओ
- निराश और दुखी जनों की हिम्मत बढ़ाओ
- समाज में स्वच्छता लाओ...
शिक्षा के बारे में बात होती तो कहते – “शिक्षा बड़ी चीज है। पैसे की तंगी आ पड़े तो खाने के बर्तन बेच दो। औरत के लिए कम दाम की साड़ियां खरीदो। टूटे-फूटे मकान में रहो। मगर बच्चों को शिक्षा जरूर दो।”
“शिक्षित करने से बड़ा कोई परोपकार नहीं है। गरीब बच्चों को शिक्षा दो। उनकी उन्नति में मददगार बनो।”
उन्हें दिखावा नापसंद था। अपने अनुयायियों से अक्सर यही कहते, "मेरी मृत्यु जहां हो जाए, वहीं मेरा संस्कार कर देना। न कोई मूर्ति बनाना, न समाधि, न ही मठ या मंदिर। लोग मेरे जीवन और कार्यों के लिए मुझे याद रखें, यही मेरी उपलब्धि होगी।"
संत गाडगे बाबा से आज कई राजनीतिक दलों और सामाजिक संस्थान प्रेरणा ले रहे हैं । ऐसे थे पूर्वज बहुजन महापुरुष, सत्यगुरु राष्ट्रसंत समाज सुधारक गाडगे महाराज जो इतिहास बनकर दिलों में जीवित रहेंगे, उन्हें नमन।
सुगंध देने वाले फूलों को पात्र में रखकर भगवान की पत्थर की मूर्ति पर अर्पित करने के बजाय चारों ओर बसे हुए लोगों की सेवा के लिए अपना खून खपाओ। भूखे लोगों को रोटी खिलाई, तो ही तुम्हारा जन्म सार्थक होगा। पूजा के उन फूलों से तो मेरा झाड़ू ही श्रेष्ठ है"। - संत गाडगे बाबा